Sunday, January 31, 2010

भारत मां को सप्रेम भेंट।

भारत मां को सप्रेम भेंट।

हिंदी.. हिंदी.. हिंदी..
हिंदी.. हैं हम वतन हैं हिंदुस्तां हमारा... हमारा।
सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तां हमारा... हमारा।

काश ये पक्तियां बाला साहब ठाकरे व उनके समर्थकों ने भी उसी अर्थ भाव से पढ़ी होती जिस अर्थ भाव से प्रत्येक वो भारतीय पढ़ता है जो हिंदुस्तान को अपने किसी न किसी सहयोग से अन्य देशों की तुलना में कदम दर कदम आगे बढ़ाने की कोशिश में जुटा है न कि अकेली मुंबई को। अरे भाषा के नाम पर मराठी हुकुमत करने चले ठाकरे को अपने जहन में एक बात यह भी उतार लेनी चाहिए कि इस देश में अंग्रेजी भाषा के नाम पर अंग्रेजी हुकुमत करने वाले अंग्रेजों का अंत में क्या हश्र हुआ था। आखिर ठाकरे चाहते क्या हैं? क्यूं वो मराठी भाषा के नाम पर राजनीति कर रहे हैं? और यदि वो ऐसा पब्लिसिटी के लिए कर रहें हैं तो निश्चित ही वो चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव जैसे शहीदों की चिताओं पर मेले नहीं कमेले लगाने जैसा काम कर रहें हैं। और वतन पर मिटने वालों का अब क्या बांकी निशा होगा यह भी ठाकरे का संकुचित दिमाग ही बता सकता है।

दिव्येन्दु सिहं तौमर,
साधना न्यूज मप्र, छग।