बात
सिर्फ एक सपने की लिखने जा रहा था लेकिन कलम हाथ में आते ही रुक गया और ना जाने
बहुत देर तक कुछ सोचता रहा कि कहां से लिखना शुरू करूं, अपने इस स्वप्न को कैसे
लिखूं, कई बार अपने पाठकों की पसंद ध्यान में आने लगी तो कई बार बड़े-बूढ़ों की
सोच ध्यान में आने लगी कि घर का बड़ा बरगद के समान होता है। एक बार कलम ने बचपन से
लिखने के लिए प्रेरित किया तो स्वप्न का कोई रिश्ता बचपन से जुड़ता दिखाई नहीं दिया।
बहुत देर सोचने के बाद लगा कि जब कलम हाथ में आ ही गई है तो फिर वही लिखा जाए जो
मन में विचार आ रहें हैं।
बस फिर
क्या था जो मन ने कहा मैं वो ही लिखता चला गया ... कहते हैं कि व्यक्ति जो दिन-भर
सोचता रहता है उसके स्वप्न में भी वहीं बाते आती हैं। लेकिन मेरे इस स्वप्न में
ऐसा कुछ भी नहीं था लेकिन इस स्वप्न ने मुझे रिश्तों को गहराई से समझने और दूसरों
को समझाने में सहायता प्रदान की। काश मैनें भी जीवन को रिश्तों की कड़ी में जोड़कर
जिया होता क्योंकि इस जिंदगी में लोगों के लिए सिर्फ और सिर्फ रिश्ते ही एहमियत
रखतें हैं। सभी लोगों के लिए “अपना” शब्द
जैसे पराया सा हो गया है। बचपन से लेकर अभी तक जीवन के इस सफर में मैंने रिश्तों
को कोई एहमियत नहीं दी थी। मैनें सभी को अपना समझकर जीवन जिया और अभी भी जी रहा
था। कहीं कोई विडंबना नहीं थी। कहीं कोई परेशानी नहीं आई। जीवन नदी के समान एक
समान प्रवाह से विकास की दिशा में बहता जा रहा था।
अचानक
जीवन में एक झटका सा लगा कि जैसे एक नींद खुलने के बाद कोई अपना हमसे बहुत दूर चला
गया है। और वो रिश्तों में बंधे कुछ लोग अपने पीछे छोड़ गया है। जो मेरे लिए पहले
भी अपने थे और आज भी अपने हैं। लेकिन परिवार के सभी सदस्यों की सोच एक जैसी नहीं
हो सकती। परिवार और समाज के कुछ लोग जो रिश्तों को एहमियत देते थे। उनके लिए दोस्त
के जाने के बाद उसके माता-पिता से संबंध खत्म हुए। भाई के जाने के बाद उसके बच्चों
से संबंध खत्म हुए। माता-पिता के लिए उनके बेटे का अपना परिवार भी पराया हुआ। सभी
लोग एकाएक बात ही करते नजर आए कि जाने वाला तो बहुत अच्छा था, उसमें बुराई नाम की
चीज थी ही नहीं।
लेकिन
मैं अपनी इस सोच को दोष दूं या भगवान के प्रति अपनी ईमानदारी समझूं कि मैं भाई की
जीवन लीला समाप्त होने के बाद जीवने के दूसरे पहलू को भी सोच रहा था। जब मरने वाला
बुरा नहीं तो फिर उसके साथ जीने वाले उसके परिवार के लोग कैसे बुरें हो सकते हैं।
जैसे कि जब भगवान श्रीराम ने कोई बुरे काम नहीं किए तो उनके अपनों के साथ-साथ उनके
अनुयायी भी बुरे नहीं हो सकते और अगर कोई बुराई होती भी है तो वो जीवन के रहते ही
देखी जा सकती है क्योंकि मरने के बाद तो सभी लोग अच्छाईयों पर ही गौर करते हैं ना
कि बुराईयों पर.....................