Friday, June 12, 2009
पत्रकारिता एक चक्रव्यूह
अपने सभी पाठक गणों को दिव्येन्दु सिहं तौमर का नमस्कार। मान्यवर सभी पाठकगणों से मेरा अनुरोध है कि लेखनी में होने वाली त्रुटियों के लिए मुझे क्षमा करें । आज मै पत्रकारिता जैसे विशेष विषय पर लिखने जा रहा हूँ। पत्रकरिता एक ऐसा चक्रव्यूह है जिसको व्यक्त कर पाना आज-कल के हम जैसे लेखकों या पत्रकारों के बस की बात नहीं है। आज इस क्षेत्र में काम करते हुए दो वर्ष होने जा रहें हैं लेकिन अभी तक भी समझ में नहीं आ रहा है कि इस चक्रव्यूह में फंस जांऊ या नहीं, जहां अपने ही मृत्युपरांत के बाद अंतिम संस्कार में भी साथ नहीं देते, जैसा कि वरिष्ट पत्रकार स्वर्गीय प्रभाष जोशी जी के साथ हुआ। उहोंने मालवा के इंदौर के लिए क्या कुछ नहीं किया लेकिन अंत क्या था यह किसी से नहीं छुपा। जब मुझे सुबह पता चला कि जोशी जी का हद्रयगति रुकने से निधन हो गया है तो मैं और मेरा प्रिय मित्र जितेंद्र जोशी दोनों हक्के-बक्के रह गये। उसके बाद उनकी आत्मा की शांति के लिए मन को शांत रखकर दो मिनट का मौन रखने का प्रयास किया तो मन में एक अजीब उथल-पुथल चल रही थी कि अब जनसत्ता में उनके लेखों को नहीं पढ पाऊंगा। इस वाक्यां के बाद समझ नहीं आ रहा है कि इस क्षेत्र का ये कैसा चक्रव्यूह है?
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real main mujhe bhi kafi dukh huaa main bhi aap ke aur joshi ji ke sath es dukh main sharik hu
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